करवा चौथ या करक चतुर्थी, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा गणेश जी की पूजा का विशेष विधान है। भारतीय संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा सदैव से होती आ रही है, क्योंकि उन्हें अनादि देव के रूप में माना जाता है। अतः गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम की जाती है।
गणेश जी की पूजा का महत्व
भगवान शिव और पार्वती ने अपने विवाह के समय सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की थी। इसका उल्लेख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य में किया है:
“मुनि अनुशासन गणपतिही पूजे शंभू भवानी। अस सुनि संशय करिय नहीं सूर अनादी जिय जानि।”
गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है, इसलिए किसी भी कार्य की निर्विघ्न पूर्णता के लिए उनकी पूजा आवश्यक मानी जाती है।
करवा चौथ की पूजन विधि
व्रति को नित्यकर्म से निवृत्त होकर गणेश जी की पूजा के लिए संकल्प करना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर गणेश जी का ध्यान करना चाहिए, और रात्रि में चंद्रोदय तक निर्जल व्रत करना चाहिए।
- व्रत के दिन सायंकाल में घर की दीवार को गोबर से लिपकर उस पर गेरू की स्याही से गणेश, पार्वती, शिव, कार्तिकेय आदि देवताओं की प्रतिमा बनानी चाहिए।
- बटवृक्ष (बरगद का पेड़) और मानव आकृति चित्रित करनी चाहिए, जिसमें मानव आकृति के हाथ में छलनी होनी चाहिए।
- दीवार पर चंद्रमा की आकृति भी बनाएं।
पूजन के समय दो करवे में जल भरकर उनके ऊपर चावल से भरा कटोरा रखें। करवे की गली में नाड़ा लपेटकर सिंदूर से सजाएं और उसकी टोटी में सरई की सीख लगाएं। इसके बाद चावल से बने लड्डू और अन्य मौसमी फल जैसे केला, सिंघाड़ा आदि अर्पित करें।
करवा फेरने की विधि
पूजन समाप्त होने पर करवे को दाहिनी ओर से बाईं ओर और बाईं ओर से दाहिनी ओर घुमाएं। इस प्रक्रिया को “करवा फेरना” कहते हैं। इस विधि से गणेश जी प्रसन्न होते हैं, और व्रति को मनवांछित फल और अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है।
साहूकार की कन्या की कथा
एक साहूकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन साहूकार की पत्नी, उसकी बहुएं और पुत्री ने करवा चौथ का व्रत रखा। पूजा के बाद भाइयों ने बहन को छल से अग्नि के प्रकाश को चंद्रमा दिखाकर भोजन करने के लिए कहा। बहन ने भाइयों की बात मानकर भोजन कर लिया, लेकिन इस कारण गणपति भगवान रुष्ट हो गए। इसके फलस्वरूप कन्या का पति गंभीर रोग से ग्रसित हो गया।
कन्या ने गणेश जी से क्षमा याचना की और व्रत को पुनः श्रद्धापूर्वक किया, जिससे गणेश जी प्रसन्न हुए और उसकी सभी परेशानियां समाप्त हो गईं।
चंद्रोदय के बाद की विधि
व्रत के अंत में चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते समय “ॐ चंद्राय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए चार बार परिक्रमा करें और दंडवत करें। इसके बाद व्रति भोजन करें। पूजन में अर्पित किए गए नैवेद्य और अन्य सामग्री ब्राह्मणों को दान दें।
जो भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।