गुड़ी पड़वा आज, जानें इस दिन का महत्व, पूजा-विधि, पौराणिक कथा

हर साल हिंदू नववर्ष यानी चैत्र महीने के पहले दिन गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन को उगादि भी कहा जाता है। हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास से होती है।

हर साल हिंदू नववर्ष यानी चैत्र महीने के पहले दिन गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन को उगादि भी कहा जाता है।

हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास से होती है। महाराष्ट्र में हिंदू नववर्ष को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते हैं। यह दिन फसल दिवस का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। लोग इस दिन घर को रंगोली, फूल-माला आदि से सजाते हैं और कई तरह के पकवान बनाते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं। एक-दूसरे के घर मिलने के लिए जाते हैं। इस पर्व में पूरन पोली और श्रीखंड मनाया जाता है। मीठे चावल भी बनाएं जाते हैं। जिसे शक्कर-भात भी कहा जाता है।

गुड़ी पड़वा का महत्व- पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुड़ी पड़वा का दिन सृष्टि की रचना के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए इस दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा का विशेष महत्व है। एक अन्य मान्यता है कि इस दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी घुसपैठियों को युद्ध में पराजित किया था। कहते हैं कि गुड़ी पड़वा के दिन बुराइयों का अंत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

गुड़ी पड़वा पूजा विधि-

1. गुड़ी पड़वा के दिन सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि किया जाता है।

2. इसके बाद मुख्यद्वार को आम के पत्तों से सजाया जाता है।

3. इसके बाद घर के एक हिस्से में गुड़ी लगाई जाती है। इसे आम के पत्तों, पुष्प और कपड़े आदि से सजाया जाता है।

4. इसके बाद भगवान ब्रह्मा की पूजा की जाती है और गुड़ी फहराते हैं।

5. गुड़ी फहराने के बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथा

दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वे दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई।

सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की। इसके बाद भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया। मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था। इसी कारण इस दिन गुड़ी यानि विजय पताका फहराई जाती है।

एक अन्य कथा के मुताबिक शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उनमें प्राण फूंक दिये और दुश्मनों को पराजित किया। इसी दिन शालिवाहन शक का आरंभ भी माना जाता है। इस दिन लोग आम के पत्तों से घर को सजाते हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी उल्लास होता है

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